देख कर मोहल्ले में कुछ बस्ते
जागी दिल में एक ख्वाइश है,
उस पुराने वक़्त के उन हसीन बारह साल को आज इस पन्ने पर उतारू,
दिल की आज बस यहीं फरमाइश हैं।
स्कूल रोज़ जब जाना था,
स्कूल ना जाने का निकलता रोज़ एक बहाना था,
रोज़ निकलती आंखो से गंगा धारा,
और बेहेता था रोज़ वो छोटा सा नाक बेचारा।
देखते ही देखते वो ज़िन्दगी का एक हिस्सा हो गया,
और हिस्से में आए
कुछ होम works,
कुछ क्लास works,
कुछ क्लास टेस्ट्स,
और ढेर सारे एग्जाम्स का वो आलम शुरू हो गया।
कुछ अच्छा हुआ तो बस ये...
की मिल गए थे कुछ दोस्त अपने से,
मिली कुछ सहेलियां भी,
सीखी कट्टा अब्बा की बाते,
आज याद कर इन्हीं प्यारी सी बातों को
हो जाता हैं दिल खुशहाल
याद हैं ना.. वो हसीन बारह साल
कैमलिन का पेंसिल बॉक्स, और गले में निस्सान की बोतल पहन...
हुए हम खूब होशियार थे,
होशियारी केसे?
पोशम पा भई पोशम पा कहकर पता लगा लेते की आखिर लाल किले में हुआ था क्या?
और राजा मंत्री चोर सिपाही खेल पूरी प्रजा को था जीत लिया।
वो मैथ्स की टीचर की मार,
वो हिंदी की टीचर का प्यार,
एक टीचर से तो हो गया था प्यार...
वो मैं नहीं मेरा बगल वाला दोस्त था यार।
बेंच को कभी तबला,
तो बनाया कभी रुमाल को तकिया,
और जब बनना हो हीरो तो उसी रुमाल को बना बंदूक चलाई थी गोलियां।
चलाई तो पेन की सियाही भी थी,
पर हुई उससे ज़्यादातर शरारत ही थी,
पेन से याद आया...
याद हैं पेंसिल से पेन पर अचानक से यू चले जाना
और जाते ही नोटबुक्स का हुआ था क्या हाल
याद है न.. वो हसीन बारह साल
रिप्रोडक्शन चैप्टर का है वो हमें हसीं दिलाना,
वो पनिष्मेंट मिलने पर भी मज़े को ढूंढ लाना,
हर परमिशन के लिए अलग सा एक्शन लगाना,
और क्लास में बैठ रबर बैंड पर पेपर लगाना,
ये खींच के किसी दे लगाना,
और पकड़े जाने पर स्केल पड़ने से हाथो का हो जाता था बुरा हाल
याद हैं ना.. वो 10th क्लास वाला साल
क्लास में गर किसी को लग जाती प्यास,
साले दोस्तो के मन में नजाने क्यों जाग जाती आस,
देंगे इसको अपनी बोतल और भर कर ये लाएगा अपने पास।
क्लास से निकल पानी भरने को जाना,
और लगे हाथ पूरे स्कूल का चक्कर भी लगाना।
घूमते घूमते उस लड़की का मिल जाना,
और उसे देखते ही एक दम हीरो माफ़िक कर लेना अपने बाल,
याद हैं न...वो इश्किया सा साल।
आज भी उन पुराने दोस्तों की बातो को याद कर लेता हूंँ
जब अपने घर के स्टोर रूम में पड़े उन पूरानी notebooks को देख लेता हूंँ,
स्कूल की वो नोटबुक्स,
नोटबुक्स के पीछे डूडल्स,
डूडल्स में छुपा था प्यार ,
प्यार पहले क्रश से,
प्यार उस स्कूल की दीवारों से,
प्यार उस स्कूल की दीवार पर टंगी घंटी से भी,
घंटी बजते ही मिलती उस खुशी से
उस खुशी की आज याद कर हुआ ये दिल हैं खुशहाल,
याद हैं न.. वो हसीन बारह साल
वो खेलना छुप छुप के ज़ीरो कट्टे का खेल
खेल एक नहीं ,खेल थे अनेक
जिसमे Pokemon भी था एक,
वो पेन फाइट का झगड़ा,
स्कूल के बाहर मिल वाला लफड़ा।
भाई की बंदी न होते हुए उसके क्रश के नाम पर उसे भाभी भाभी कहकर चिढ़ाया हैं,
डरता क्यों हैं? आज बोल ही दे.. मैं हूँ पीछे खड़ा कहकर खुद को नौ दो ग्यारह भी करवाया हैं,
उसके क्रश के सामने उसे धक्का दे..खुद को वह। सेभी भगवया हैं,
इन सालो में मैंने भी कमाये हैं कुछ साल,
याद हैं मुझको...वो हसीन पलो भरे साल।
जानता हूंँ कि पीछे छूट चुका हैं सब,
मिलना हो पाता हैं कम और बाय चांस मेट्रो में ही मिलना हो पाता हैं अब,
मिला वो स्कूल का पहला क्रश भी हैं
जिसे शायद मेरी शक्ल भी नहीं है याद अब,
मिली वो टीचर भी हैं ..जिन्हें दोस्त जानते उनके नाम से कम और हमारे दिए हुए नाम से जाने जाते हैं सब।
आज भी जब अपने पुरानी स्कूल की डायरी को देखता हूंँ,
डायरी के उन शुरुआती पन्नों को देख स्कूल की सुबह की असेम्बली याद आ जाती हैं,
असेम्बली में बोली जाने वाली pledge की याद आती हैं,
पी. टी वाले दिन पी. टी शूज़ को चालक से रंग, असेम्बली की लाइन से निकलने से बच जाने वाले दिनों की आज भी याद आ जाती हैं,
वो असेम्बली वाले दिन थे बड़े ही कमाल,
याद हैं न.. वो ड्यूटी वाले बारह साल।
याद हैं न... वो हसीन बारह साल।।
(स्कूलों में से एक स्कूल ऐसा भी था मिला
जो स्कूलों में सबसे प्यारा था लगा,
स्कूल था भले ही वो आठवीं क्लास तक वाला,
पर उसी स्कूल ने मेरा और मैने उस स्कूल का था दिल जीत डाला।
आज भी जब शाम जाता उस स्कूल की गली,
तो झांक लेता हूं उस स्कूल की तरफ क्युकि वो आज भी अपना सा लगता हैं,
बस गर कुछ बदला हैं तो उसका बस नाम और कुछ दीवारें,
पर यादे नहीं ,
आज भी वहीं मछलियों वाला एक्वेरियम वैसा हीं सजा हैं, जैसा सालो पहला सजा था।
ठीक उसी तरह जैसा उसका असली नाम था, आज भी मेरे दिल के प्यारे से कोने में हैं सजा,
वो मेरा अपना स्कूल हैं, जो मेरे दिल में हैं बसा।)
_✍️शुभम शाह

Bhot hi bdia.. Yade taza ho gyi
ReplyDeleteशुक्रिया
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