Sunday, 9 June 2019

आए तो सहीं।





खुद से तेरी बातें  करते हुए,
खुद से ही तेरी तारीफे करते हुए,
अब हम सोने लगे  हैं यूहीं,
बातें वो बीती वाली उनसे ही करने के लिए
ढूंढ़ती है ये भींगी आंखे उन्हें,
पर वो कमबख्त तो मिले सहीं।

हर बहाव की तरह,
एक ठहराव भी हैं ज़रूरी,
पर  उनके बिना ये ठहराव चाहिए नहीं,
अरसा सा हो गया है...हाँ अरसा हो गया है
उस ठहराव को आए हुए,
पर कमबख्त वो सही वक़्त तो आए सहीं।

इश्क़ की बारिश के भी रसूख अलग हैं,
कभी परवानों को ये गई भींगा
तो कभी सौंधी सी महक दे गई कहीं,
महक से तो रिश्ता अपना सा हैं,
पर उन बारिश के छींटों की
मेहरबानियां हमें भी तो मिले सहीं।
                                        ___✍️शुभम शाह












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