चलो माना कुछ हैं नहीं हमारे बीच,
पर ऐसा भी नहीं की कुछ हैं नहीं हमारे बीच।
पल दो पल की बाते होगी
चलो एक या शायद दो मुलाकाते होगी,
सोचकर हुआ ज़रूर था शुरू ये रिश्ता
पर उस पल से आज तक यूहीं नहीं निभ रहा ये रिश्ता।
हाँ शायद ये पूरा खेल दिल की उसी भावना का हैं
जिसने मुझसे ये पूछना मुनासिब न समझा,
और खुद से दिल ने अपना मन बना लिया
कि अब तामाम कामो में से एक काम तुमको चाहना भी है।
भावना तो उधर भी थी
जिसका रूप तो सुलझा सा था,
पर बेचारा खुद में ही उलझा सा था
उलझने का कारण इस बार भी समाज ही था।
समाज ही हैं जो आया है सभी के बीच
और इसी वजह से हर थी एक ने कभी ना कभी कहा है कि कुछ नहीं हैं हमारे बीच,
और कुछ ना रहते हुए भी ऐसा बिल्कुल नहीं हैं की
कुछ हैं नहीं हमारे बीच।
__✍️शुभम शाह
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