Sunday, 5 August 2018

वो छोटा सा सफ़र



यूं तो हज़ारों बार उस गली से गुजर जाना हुआ,
कभी अकेले तो कभी यारो के साथ उसी गली में गुनगुनाना हुआ,
कभी गाते तो कभी मुरझाते तय ये सफ़र का फ़साना हुआ,
यूं तो हसीन सा एहसास पहले भी होता था पर तेरे आने के बाद क्यूं वो सफ़र का एहसास रोमांटिकाना हुआ।

रास्ता ये ना हो खत्म, दिल का ना जाने क्यूं ये भी शुरू चाहना हुआ,
तुम्हें जानते हुए भी, तुम्हें थोड़ा और जानना भी उस सफ़र में ही हुआ,
कुछ तुम्हारा बताना कुछ मेरा सुनाना, या सिर्फ़ तुम्हारा बताना और मेरा उसे ही सुनते जाना भी तो उन्हीं गलियों में ही तो था हुआ,
इससे पहले तो कॉलेज से वो बस स्टैंड तक का सफ़र अचानक न यू आशिकाना  हुआ।

उस सफ़र की यादों के सफ़र में आज फिर से इस दिल का जाना हुआ,
और वो छोटा सा बस स्टैंड तक वाला सफ़र फ़़िर शायाराना हुआ,
और इस नए नए बने शायर का मिजाज़ आज फ़िर आशिकाना हुआ।
         __✍️❤️शुभम शाह

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