तू क्यों नहीं मुझे संभाल रही अब?
क्यों रास्ता नहीं दिखा रही अब?
ज़रूरत हैं तेरी तो फिर क्यों नहीं मेरे सर को सेहेला रही अब?
ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?
माना कि बहुत बार तुझे सुना नहीं मैंने,
जिस चीज़ की तूने मनाही करी,उसे ही कई बार करा हैं मैंने,
सुननी जब तेरी थी..
जीना जब तेरे को था..
सुना किसी और को हैं मैंने, हाँ आज माना हैं मैने।
अच्छा ज़िन्दगी... इतनी नाराज़गी ?
तू तो मेरी ही थी ना...?
फ़िर आज आखिर ऐसा हुआ क्या हैं?
क्या कभी मैंने अपनी तनहाईयों में तुझसे बाते नहीं करी?
क्या कभी अपनी दिल की बात तुझसे नहीं करी?
ज़िन्दगी आज ऐसे मज़ाक क्यों कर रही हैं?
आखिर तुझे हुआ क्या हैं?
याद कर...
कभी जब घर की बालकनी में अकेला था,
तब तुझे ही तो हमदम बनाया था।
याद कर..
रात जब दिल उदास था
तब उस तकिए को ज़िन्दगी तुझे ही समझ
तो उसे सीने से लगाया था,
उसी रात तो आंखे छुपा कर
मैंने अपने उस तकिए को भी नम बनाया था,
ज़िन्दगी कुछ तो पुराने लम्हों को याद कर,
कुछ तो मेरे और अपने उन अश्कों को याद कर,
अश्कों में छुपे उन दर्द को याद कर,
ज़िन्दगी प्लीज़ मुझे गले लगा, गले लगा के फिर से आज बात कर,
ज़िन्दगी आखिर तुझे ये हुआ क्या हैं?
__✍️शुभम शाह

Kahaani sabki, Alfaaz mere
ReplyDeletekahaani mei zindagi kisi ka pyaar,
kisi ka parivaar,kisi ka yaar, kuch bhi ho sakta hai
par agar vo zindagi ruthi ho toh jazbaat kuch aise hi nikalte hai..