Monday, 13 August 2018

कुछ हैं नहीं हमारे बीच ?



चलो माना कुछ हैं नहीं हमारे बीच,
पर ऐसा भी नहीं की कुछ हैं नहीं हमारे बीच।

पल दो पल की बाते होगी
चलो एक या शायद  दो मुलाकाते होगी,
सोचकर हुआ ज़रूर था शुरू ये रिश्ता
पर उस पल से आज तक यूहीं नहीं निभ रहा ये रिश्ता।

हाँ शायद ये पूरा खेल दिल की उसी भावना का हैं
जिसने मुझसे ये पूछना मुनासिब न समझा,
और खुद से दिल ने अपना मन बना लिया
कि अब तामाम कामो में से एक काम तुमको चाहना भी है।

भावना तो उधर भी थी
जिसका रूप तो सुलझा सा था,
पर बेचारा खुद में ही उलझा सा था
उलझने का कारण इस बार भी समाज ही था।

समाज ही हैं जो आया है सभी के बीच
और इसी वजह से हर थी एक ने कभी ना कभी कहा है कि कुछ नहीं हैं हमारे बीच,
और कुछ ना रहते हुए भी ऐसा बिल्कुल नहीं हैं की
कुछ हैं नहीं हमारे बीच।

                        __✍️शुभम शाह

Sunday, 5 August 2018

वो छोटा सा सफ़र



यूं तो हज़ारों बार उस गली से गुजर जाना हुआ,
कभी अकेले तो कभी यारो के साथ उसी गली में गुनगुनाना हुआ,
कभी गाते तो कभी मुरझाते तय ये सफ़र का फ़साना हुआ,
यूं तो हसीन सा एहसास पहले भी होता था पर तेरे आने के बाद क्यूं वो सफ़र का एहसास रोमांटिकाना हुआ।

रास्ता ये ना हो खत्म, दिल का ना जाने क्यूं ये भी शुरू चाहना हुआ,
तुम्हें जानते हुए भी, तुम्हें थोड़ा और जानना भी उस सफ़र में ही हुआ,
कुछ तुम्हारा बताना कुछ मेरा सुनाना, या सिर्फ़ तुम्हारा बताना और मेरा उसे ही सुनते जाना भी तो उन्हीं गलियों में ही तो था हुआ,
इससे पहले तो कॉलेज से वो बस स्टैंड तक का सफ़र अचानक न यू आशिकाना  हुआ।

उस सफ़र की यादों के सफ़र में आज फिर से इस दिल का जाना हुआ,
और वो छोटा सा बस स्टैंड तक वाला सफ़र फ़़िर शायाराना हुआ,
और इस नए नए बने शायर का मिजाज़ आज फ़िर आशिकाना हुआ।
         __✍️❤️शुभम शाह