Thursday, 19 July 2018

फ़िर क्यूं?


इश्क़ उनको भी था
इश्क़ इसको भी था,
ज़ुबा पर इज़हार इसके भी था
आंँखों में इकरार उनके भी था।

बेपरवाह हुआ था वो बस उसकी परवाह करने के लिए
बंदिशों को तोड़कर,
फ़िक्र की चादर उसने भी ओढ़ ली थी उस बेपरवाह के लिए
पर  बंदिशों में रहकर,
समानता बस यह हैं कि-
प्यार उनको भी था,
प्यार इसको भी था।

इज़हार था, इकरार था, प्यार वाला तकरार भी था
और प्यार तो था ही,
फ़िक्र भी थी, इबादत भी थी, सजदा भी वो कई बार हुए थे-
सब कुछ तो था ही,

फ़िर क्यूं?
बस इसके ज़ुबां पर इज़हार था
और दिल में इज़हार का घर होते हुए भी
क्यूं? ज़ुबा पर उनके इनकार था....

(शायद ये अभी अधूरी काल्पनिक कहानी हैं)
                           _✍️शुभम शाह