Saturday, 23 June 2018

शहर दिल्ली सवारी मेट्रो



आते जाते अनजान लोग,
लोगो के चेहरों पर कहानी हैं ढेरो,
एक साथ जहां मिलेगी इतनी कहानी
वो रस्ता है मेट्रो,
मेरे शहर का नाम दिल्ली और मेरी सवारी हैं मेट्रो

सीट पर बैठे बैठे,
या मेट्रो की दीवारों से अड़ के,
लोगो के चेहरों पर किस्से पड़े हैं ढेरो,
जनाब के जॉब का हैं इंटरव्यू पहला,
हाथो में हैं पसीना और चेहरे पर हैं शिकंज ढेरो,

मेहबूबा से हैं मिलना,
तो हाथो में हैं तोहफ़ा,
और बालों पर उंगलियों को फेरो,
कानो में लीड,म्यूज़िक हैं ऑफ
बगल वाला क्या करता बाते उधर भी ज़रा कान देलो,

उस बूढ़ी महिला का ऐसक्लेटर का डर,
लिफ़्ट में जाओ तो कुछ बुजुर्गो का दिखता अकड़,
ज्ञान के बाहने कहना बेटा तू अभी है जवान
चल - चल बाहर निकल,

मेट्रो की सीढ़ियों पर,
आजकल भिखारी पर ही नहीं,
प्रेमी जोड़ियों पर भी चली जाती हैं नज़र,
मेट्रो सीट पर बैठो तो साला यहां भी एक आशिक फ़ोन पर ले रहा अपनी बाबू की खबर,

इस मेट्रो लाइफ में,
मेट्रो स्टेशन पर ही हुई पुरानी दोस्तो से आज मुलाकात हैं,
कुछ ने आज भी नज़रे बचाई,
और कुछ ने गले लगा पूछा और भाई क्या बात है?

एक सीट की कीमत तुम क्या जानो
सीट के लिए तो बेटा यहां खून भी बहा है भतेरो,
यहां दिखता है प्यार भी और होती है मस्त तकरार भी
इस शहर का नाम हैं दिल्ली
और इस गाड़ी का नाम है मेट्रो

       __✍️शुभम शाह

Sunday, 17 June 2018

ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?


ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?
तू क्यों नहीं मुझे संभाल रही अब?
क्यों रास्ता नहीं दिखा रही अब?
ज़रूरत हैं तेरी तो फिर क्यों नहीं मेरे सर को सेहेला रही अब?

ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?
माना कि बहुत बार तुझे सुना नहीं मैंने,
जिस चीज़ की तूने मनाही करी,उसे ही कई बार करा हैं मैंने,
सुननी जब तेरी थी..
जीना जब तेरे को था..
सुना किसी और को हैं मैंने, हाँ आज माना हैं मैने।

अच्छा ज़िन्दगी... इतनी नाराज़गी ?
तू तो मेरी ही थी ना...?
फ़िर आज आखिर ऐसा हुआ क्या हैं?
क्या कभी मैंने अपनी तनहाईयों में तुझसे बाते नहीं करी?
क्या कभी अपनी दिल की बात तुझसे नहीं करी?

ज़िन्दगी आज ऐसे मज़ाक क्यों कर रही हैं?
आखिर तुझे हुआ क्या हैं?
याद कर...
कभी जब घर की बालकनी में अकेला था,
तब तुझे ही तो हमदम बनाया था।

याद कर..
रात जब दिल उदास था
तब उस तकिए को ज़िन्दगी तुझे ही समझ
तो उसे सीने से लगाया था,
उसी रात तो आंखे छुपा कर
मैंने अपने उस तकिए को भी नम बनाया था,

ज़िन्दगी कुछ तो पुराने लम्हों को याद कर,
कुछ तो मेरे और अपने उन अश्कों को याद कर,
अश्कों में छुपे उन दर्द को याद कर,
ज़िन्दगी प्लीज़ मुझे गले लगा, गले लगा के फिर से आज बात कर,

ज़िन्दगी आखिर तुझे ये हुआ क्या हैं?
                __✍️शुभम शाह