Friday, 28 September 2018

मज़हब - एक ज़हर




मज़हब का काश एक प्यारा सा मज़हब होता,
जहां का कोई पाशिंदा कभी ना  रोया होता,

मज़हब लफ्ज़ लेने से रूह से ये मुसलमान वाला बंधू होगा,
गर जो कहूं धर्म हैं मेरा तो... अरे नहीं नहीं ये मुसलमान नहीं ये तो हिन्दू होगा।

लफ़्ज़ों में और भाषा में लोग अब धर्म ढूंढ़ लेते हैं,
नाम के पीछे क्या नाम है... उस नाम में लोग खुदा ढूंढ़ लेते हैं।

माथा तूने गुरु के पास भी है टेका, सजदा सर तेरा उस खुदा के पास भी हुआ होगा,
तो सोचता हूं मैं ये.. तू उस अल्लाह के बंदे को मार क्यों अंदर से खुश हुआ होगा।

मोहब्बत की नज़्म ना लिख ,लिख डाले धर्म के नारे कई,
अमन का ना पैग़ाम  फ़रमा, बजा डाले खौफ़ के नगाड़े कई।

इश्क़ में दिल को तुड़वाया गया, वो खुद ना था टूटा... उसे क‌ई बार था सताया गया,
इश्क़ में वो सिर्फ़ इंसाँ थे, कौम से ना था वास्ता,  इसलिए मज़हब को वहां था फ़िर से लाया गया।

बेवफ़ा बना एक शक्स को दूसरे को बना कातिल उन्होंने खुद नहीं... उनसे गुनाह करवाया गया,
एक से बेवफ़ाई तो दूसरे से  मोहब्बत का कत्ल चुपके से था करवाया गया।

और मोहब्बत को, उस अमन को, उस नाम को उस दोस्ती को, उस महसूस को,
धर्म कहूं या मज़हब इसी नाम के ज़हर से इनका खून करवाया गया।
                     
                                                                                 __✍️शुभम शाह

Saturday, 8 September 2018

मेरे पास किस्सों की कतार हैं।





मैं राही हूंँ उस पथ का
जिसपर मिलते चेहरे हज़ार हैं,
हर चेहरे की एक कहानी है,
उस एक कहानी में ही किस्सों की भरमार हैं,
फ़ुरसत से बैठोगे मेरे संग? मेरे पास किस्सों की कतार हैं।

किस्सो में हर तरह के किरदार से मिलाया करूंगा,
जिसमे खुला हुआ वो नीले रंग का आसमान होगा पर मैं बात उन तारों से घिरी रात की किया करूंगा,
जिसमें लड़के की लड़की से मुलाकात हुई थी ऐसे ही कई मुलाकातों की मैं बात किया करूंगा,
कभी चलना मेरे साथ, मैं किस्से सुनाया करूंगा।

दोस्ती का मतलब तुम्हें पता ज़रूर होगा पर दोस्ती के मायने क्या हैं तुम्हें आज ये बतलाऊंगा,
चाय की चुस्की, चुराए निवाले और दो हसीं के बोल में ही कहीं एक दर्द दब सा जाता हैं,तुम थोड़ा सब्र रखना मेरे किस्सों में मैं उन दर्द से भी तुम्हें मिलवाऊंगा,
तुम आज अपने दिल को मज़बूत रखना मेरे किस्सों में मैं आज तुम्हें तुमसे ही मुखातिब करवाऊंगा,
ज़रा चलोगे मेरे संग? मैं आज कुछ किस्से सुनाऊंगा।

तुम उदास मत होना, सिर्फ दर्द से ही नाता नहीं रहा हैं खुशियों से भी मेरा रिश्ता पुराना हैं,
खुशियां भी कुछ रिश्तों में ही मिली हैं जिसमें मां बाप भाई दोस्तों और कुछ अनजान चेहरों का भी अफसाना हैं,
अरे हा.. उस बरसात की रात में उस लड़की ने लड़के से क्या कहा था  वो खुशनुमा किस्सा भी तो सुनाना हैं,
कुछ देर बैठोगे मेरे संग? मुझे एक किस्सा सुनाना हैं।

मैं दर्शक हूंँ उस भीड़ का जिसमे चेहरे हज़ार हैं,
हर चेहरे की एक कहानी है,
उस एक कहानी में ही किस्सों की भरमार हैं,
फ़ुरसत से बैठोगे मेरे संग? मेरे पास किस्सों की लंबी कतार हैं।

                        __✍️शुभम शाह

Monday, 13 August 2018

कुछ हैं नहीं हमारे बीच ?



चलो माना कुछ हैं नहीं हमारे बीच,
पर ऐसा भी नहीं की कुछ हैं नहीं हमारे बीच।

पल दो पल की बाते होगी
चलो एक या शायद  दो मुलाकाते होगी,
सोचकर हुआ ज़रूर था शुरू ये रिश्ता
पर उस पल से आज तक यूहीं नहीं निभ रहा ये रिश्ता।

हाँ शायद ये पूरा खेल दिल की उसी भावना का हैं
जिसने मुझसे ये पूछना मुनासिब न समझा,
और खुद से दिल ने अपना मन बना लिया
कि अब तामाम कामो में से एक काम तुमको चाहना भी है।

भावना तो उधर भी थी
जिसका रूप तो सुलझा सा था,
पर बेचारा खुद में ही उलझा सा था
उलझने का कारण इस बार भी समाज ही था।

समाज ही हैं जो आया है सभी के बीच
और इसी वजह से हर थी एक ने कभी ना कभी कहा है कि कुछ नहीं हैं हमारे बीच,
और कुछ ना रहते हुए भी ऐसा बिल्कुल नहीं हैं की
कुछ हैं नहीं हमारे बीच।

                        __✍️शुभम शाह

Sunday, 5 August 2018

वो छोटा सा सफ़र



यूं तो हज़ारों बार उस गली से गुजर जाना हुआ,
कभी अकेले तो कभी यारो के साथ उसी गली में गुनगुनाना हुआ,
कभी गाते तो कभी मुरझाते तय ये सफ़र का फ़साना हुआ,
यूं तो हसीन सा एहसास पहले भी होता था पर तेरे आने के बाद क्यूं वो सफ़र का एहसास रोमांटिकाना हुआ।

रास्ता ये ना हो खत्म, दिल का ना जाने क्यूं ये भी शुरू चाहना हुआ,
तुम्हें जानते हुए भी, तुम्हें थोड़ा और जानना भी उस सफ़र में ही हुआ,
कुछ तुम्हारा बताना कुछ मेरा सुनाना, या सिर्फ़ तुम्हारा बताना और मेरा उसे ही सुनते जाना भी तो उन्हीं गलियों में ही तो था हुआ,
इससे पहले तो कॉलेज से वो बस स्टैंड तक का सफ़र अचानक न यू आशिकाना  हुआ।

उस सफ़र की यादों के सफ़र में आज फिर से इस दिल का जाना हुआ,
और वो छोटा सा बस स्टैंड तक वाला सफ़र फ़़िर शायाराना हुआ,
और इस नए नए बने शायर का मिजाज़ आज फ़िर आशिकाना हुआ।
         __✍️❤️शुभम शाह

Thursday, 19 July 2018

फ़िर क्यूं?


इश्क़ उनको भी था
इश्क़ इसको भी था,
ज़ुबा पर इज़हार इसके भी था
आंँखों में इकरार उनके भी था।

बेपरवाह हुआ था वो बस उसकी परवाह करने के लिए
बंदिशों को तोड़कर,
फ़िक्र की चादर उसने भी ओढ़ ली थी उस बेपरवाह के लिए
पर  बंदिशों में रहकर,
समानता बस यह हैं कि-
प्यार उनको भी था,
प्यार इसको भी था।

इज़हार था, इकरार था, प्यार वाला तकरार भी था
और प्यार तो था ही,
फ़िक्र भी थी, इबादत भी थी, सजदा भी वो कई बार हुए थे-
सब कुछ तो था ही,

फ़िर क्यूं?
बस इसके ज़ुबां पर इज़हार था
और दिल में इज़हार का घर होते हुए भी
क्यूं? ज़ुबा पर उनके इनकार था....

(शायद ये अभी अधूरी काल्पनिक कहानी हैं)
                           _✍️शुभम शाह



Saturday, 23 June 2018

शहर दिल्ली सवारी मेट्रो



आते जाते अनजान लोग,
लोगो के चेहरों पर कहानी हैं ढेरो,
एक साथ जहां मिलेगी इतनी कहानी
वो रस्ता है मेट्रो,
मेरे शहर का नाम दिल्ली और मेरी सवारी हैं मेट्रो

सीट पर बैठे बैठे,
या मेट्रो की दीवारों से अड़ के,
लोगो के चेहरों पर किस्से पड़े हैं ढेरो,
जनाब के जॉब का हैं इंटरव्यू पहला,
हाथो में हैं पसीना और चेहरे पर हैं शिकंज ढेरो,

मेहबूबा से हैं मिलना,
तो हाथो में हैं तोहफ़ा,
और बालों पर उंगलियों को फेरो,
कानो में लीड,म्यूज़िक हैं ऑफ
बगल वाला क्या करता बाते उधर भी ज़रा कान देलो,

उस बूढ़ी महिला का ऐसक्लेटर का डर,
लिफ़्ट में जाओ तो कुछ बुजुर्गो का दिखता अकड़,
ज्ञान के बाहने कहना बेटा तू अभी है जवान
चल - चल बाहर निकल,

मेट्रो की सीढ़ियों पर,
आजकल भिखारी पर ही नहीं,
प्रेमी जोड़ियों पर भी चली जाती हैं नज़र,
मेट्रो सीट पर बैठो तो साला यहां भी एक आशिक फ़ोन पर ले रहा अपनी बाबू की खबर,

इस मेट्रो लाइफ में,
मेट्रो स्टेशन पर ही हुई पुरानी दोस्तो से आज मुलाकात हैं,
कुछ ने आज भी नज़रे बचाई,
और कुछ ने गले लगा पूछा और भाई क्या बात है?

एक सीट की कीमत तुम क्या जानो
सीट के लिए तो बेटा यहां खून भी बहा है भतेरो,
यहां दिखता है प्यार भी और होती है मस्त तकरार भी
इस शहर का नाम हैं दिल्ली
और इस गाड़ी का नाम है मेट्रो

       __✍️शुभम शाह

Sunday, 17 June 2018

ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?


ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?
तू क्यों नहीं मुझे संभाल रही अब?
क्यों रास्ता नहीं दिखा रही अब?
ज़रूरत हैं तेरी तो फिर क्यों नहीं मेरे सर को सेहेला रही अब?

ज़िन्दगी ये तुझे हुआ क्या हैं?
माना कि बहुत बार तुझे सुना नहीं मैंने,
जिस चीज़ की तूने मनाही करी,उसे ही कई बार करा हैं मैंने,
सुननी जब तेरी थी..
जीना जब तेरे को था..
सुना किसी और को हैं मैंने, हाँ आज माना हैं मैने।

अच्छा ज़िन्दगी... इतनी नाराज़गी ?
तू तो मेरी ही थी ना...?
फ़िर आज आखिर ऐसा हुआ क्या हैं?
क्या कभी मैंने अपनी तनहाईयों में तुझसे बाते नहीं करी?
क्या कभी अपनी दिल की बात तुझसे नहीं करी?

ज़िन्दगी आज ऐसे मज़ाक क्यों कर रही हैं?
आखिर तुझे हुआ क्या हैं?
याद कर...
कभी जब घर की बालकनी में अकेला था,
तब तुझे ही तो हमदम बनाया था।

याद कर..
रात जब दिल उदास था
तब उस तकिए को ज़िन्दगी तुझे ही समझ
तो उसे सीने से लगाया था,
उसी रात तो आंखे छुपा कर
मैंने अपने उस तकिए को भी नम बनाया था,

ज़िन्दगी कुछ तो पुराने लम्हों को याद कर,
कुछ तो मेरे और अपने उन अश्कों को याद कर,
अश्कों में छुपे उन दर्द को याद कर,
ज़िन्दगी प्लीज़ मुझे गले लगा, गले लगा के फिर से आज बात कर,

ज़िन्दगी आखिर तुझे ये हुआ क्या हैं?
                __✍️शुभम शाह

     


Friday, 25 May 2018

बाकी हैं


ज़िन्दगी... बस इतना सा दर्द क्यूं?
दर्द से रिश्ता बस इतना सा क्यूं ?
सितम का सिलसिला इतना कम क्यूं ?
अभी तेरा मुझको और गिराना बाकी हैं।

अभी ठोकरों की गिनती में इज़ाफ़ा बाकी हैं,
अभी रुसवाई का आलम शुरू होना बाकी हैं,
अभी गिरकर संभालना और संभल के गिरना बाकी हैं,
ज़िन्दगी अभी तेरा मुझको सताना और बाकी हैं।

तेरा मुझको अभी इस्तेमाल करना और बाकी हैं,
मुझको इस्तेमाल कर मुझको रुलाना अभी बाकी हैं,
रुला कर अन्दर से तोड़ना तेरा अभी बाकी हैं,
ज़िन्दगी मेरी रूह को मार डालना तेरा अभी  बाकी हैं।

तोड़  मेरा हौसला, उस हौसले को दोबारा जगाना अभी ...मेरा बाकी हैं,
गिरा के फिर देखले, गिर दोबारा उठना और उठ कर दोबारा तेरे इम्तिहान में उतरना अभी... मेरा बाकी हैं,
किस्मत जो तू बनाना ही भूल गया, उसी किस्मत को खुद बनाना अभी...मेरा बाकी हैं,
रूठले जितना तुझे रूठना है, तुझे मना के रहूंगा,
मनाया तो हैं पर शायद तुझको थोड़ा और मनाना... अभी मेरा बाकी हैं।
                   
                           __✍️शुुुभम शाह
 

Thursday, 24 May 2018

याद हैं ना वो हसीन बारह साल


देख कर मोहल्ले में कुछ बस्ते
जागी दिल में एक ख्वाइश है,
उस पुराने वक़्त के उन हसीन बारह साल को आज इस पन्ने पर उतारू,
दिल की आज बस यहीं फरमाइश हैं।

स्कूल रोज़ जब जाना था,
स्कूल ना जाने का निकलता रोज़ एक बहाना था,
रोज़ निकलती आंखो से गंगा धारा,
और बेहेता था रोज़ वो छोटा सा नाक बेचारा।

देखते ही देखते वो ज़िन्दगी का एक हिस्सा हो गया,
और हिस्से में आए
कुछ होम works,
कुछ क्लास works,
कुछ क्लास टेस्ट्स,
और ढेर सारे एग्जाम्स का वो आलम शुरू हो गया।

कुछ अच्छा हुआ तो बस ये...
की मिल गए थे कुछ दोस्त अपने से,
मिली कुछ सहेलियां भी,
सीखी कट्टा अब्बा की बाते,
आज याद कर इन्हीं प्यारी सी बातों को
हो जाता हैं दिल खुशहाल
याद हैं ना.. वो हसीन बारह साल

कैमलिन का पेंसिल बॉक्स, और गले में निस्सान की बोतल पहन...
हुए हम खूब होशियार थे,
होशियारी केसे?
पोशम पा भई पोशम पा कहकर पता लगा लेते की आखिर लाल किले में हुआ था क्या?
और राजा मंत्री चोर सिपाही खेल पूरी प्रजा को था जीत लिया।

वो मैथ्स की टीचर की मार,
वो हिंदी की टीचर का प्यार,
एक टीचर से तो हो गया था प्यार...
वो मैं नहीं मेरा बगल वाला दोस्त था यार।

बेंच को कभी तबला,
तो बनाया कभी रुमाल को तकिया,
और जब बनना हो हीरो तो उसी रुमाल को बना बंदूक चलाई थी गोलियां।

चलाई तो पेन की सियाही भी थी,
पर हुई उससे ज़्यादातर शरारत ही थी,
पेन से याद आया...
याद हैं पेंसिल से पेन पर अचानक से यू चले जाना
और जाते ही नोटबुक्स का हुआ था क्या हाल
याद है न.. वो हसीन बारह साल

रिप्रोडक्शन चैप्टर का है वो हमें हसीं दिलाना,
वो पनिष्मेंट मिलने पर भी मज़े को ढूंढ लाना,
हर परमिशन के लिए अलग सा एक्शन लगाना,
और क्लास में बैठ रबर बैंड पर पेपर लगाना,
ये खींच के किसी दे लगाना,
और पकड़े जाने पर स्केल पड़ने से हाथो का हो जाता था बुरा हाल
याद हैं ना.. वो 10th क्लास वाला साल

क्लास में गर किसी को लग जाती प्यास,
साले दोस्तो के मन में नजाने क्यों जाग जाती आस,
देंगे इसको अपनी बोतल और भर कर ये लाएगा अपने पास।
क्लास से निकल पानी भरने को जाना,
और लगे हाथ पूरे स्कूल का चक्कर भी लगाना।
घूमते घूमते उस लड़की का मिल जाना,
और उसे देखते ही एक दम हीरो माफ़िक कर लेना अपने बाल,
याद हैं न...वो इश्किया सा साल।

आज भी उन पुराने दोस्तों की बातो को याद कर लेता हूंँ
जब अपने घर के स्टोर रूम में पड़े उन पूरानी notebooks को देख लेता हूंँ,
स्कूल की वो नोटबुक्स,
नोटबुक्स के पीछे डूडल्स,
डूडल्स में छुपा था प्यार ,
प्यार  पहले क्रश से,
प्यार उस स्कूल की दीवारों से,
प्यार उस स्कूल की दीवार पर टंगी घंटी से भी,
घंटी बजते ही मिलती उस खुशी से
उस खुशी की आज याद कर हुआ ये दिल हैं खुशहाल,
याद हैं न.. वो हसीन बारह साल

वो खेलना छुप छुप के ज़ीरो कट्टे का खेल
खेल एक नहीं ,खेल थे अनेक
जिसमे Pokemon भी था एक,
वो पेन फाइट का झगड़ा,
स्कूल के बाहर मिल वाला लफड़ा।

भाई की बंदी न होते हुए उसके क्रश के नाम पर उसे भाभी भाभी कहकर चिढ़ाया हैं,
डरता क्यों हैं? आज बोल ही दे.. मैं हूँ पीछे खड़ा कहकर खुद को नौ दो ग्यारह भी करवाया हैं,
उसके क्रश के सामने उसे धक्का दे..खुद को वह। सेभी भगवया हैं,
इन सालो में मैंने भी कमाये हैं कुछ साल,
याद हैं मुझको...वो हसीन पलो भरे साल।

जानता हूंँ कि पीछे छूट चुका हैं सब,
मिलना हो पाता हैं कम और बाय चांस मेट्रो में ही मिलना हो पाता हैं अब,
मिला वो स्कूल का पहला क्रश भी हैं
जिसे शायद मेरी शक्ल भी नहीं है याद अब,
मिली वो टीचर भी हैं ..जिन्हें दोस्त जानते उनके नाम से कम और हमारे दिए हुए नाम से जाने जाते हैं सब।

आज भी जब अपने पुरानी स्कूल की डायरी को देखता हूंँ,
डायरी के उन शुरुआती पन्नों को देख स्कूल की सुबह की असेम्बली याद आ जाती हैं,
असेम्बली में बोली जाने वाली pledge की याद आती हैं,
पी. टी वाले दिन पी. टी शूज़ को चालक से रंग, असेम्बली की लाइन से निकलने से बच जाने वाले दिनों की आज भी याद आ जाती हैं,
वो असेम्बली वाले दिन थे बड़े ही कमाल,
याद हैं न.. वो ड्यूटी वाले बारह साल।
याद हैं न... वो हसीन बारह साल।।

(स्कूलों में से एक स्कूल ऐसा भी था मिला
जो स्कूलों में  सबसे प्यारा था लगा,
स्कूल था भले ही वो आठवीं क्लास तक वाला,
पर उसी स्कूल ने मेरा और मैने उस स्कूल का था दिल जीत डाला।
आज भी जब शाम जाता उस स्कूल की गली,
तो झांक लेता हूं उस स्कूल की तरफ क्युकि वो आज भी अपना सा लगता हैं,
बस गर कुछ बदला हैं तो उसका बस नाम और कुछ दीवारें,
पर यादे नहीं ,
आज भी वहीं मछलियों वाला एक्वेरियम  वैसा हीं सजा हैं, जैसा सालो पहला सजा था।
ठीक उसी तरह जैसा उसका असली नाम था, आज भी मेरे दिल के प्यारे से कोने में हैं सजा,
वो मेरा अपना स्कूल हैं, जो मेरे दिल में हैं बसा।)

                                     _✍️शुभम शाह
                     

Wednesday, 16 May 2018

कुछ बात एक बिहारी के साथ




गर्व होता है ना जब आपको कोई आपकी राष्ट्रीयता से आपके स्टेट से जानता है,
छाती चौड़ी हो जाती हैं ना?
चलो कुछ बताता हूं,
मैं एक बिहारी हूं और मुझे इस बात का गर्व बचपन से था,
पर मैं बिहारी इसलिए नहीं क्यूकी मैं कंधे पर गमछा रखता हूं, या फ़िर कोई गंवार और अनपढ़ हूं,
मैं बिहारी इसलिए हूं because I was born in bihar.

मेरा कोई पूरा बचपन तो बिहार में नहीं बीता पर जितना भी बीता सब प्यारा सा बीता,
पटना की फेमस पोल्का आइसक्रीम,
वो एम आर एफ का लेदर का बल्ला,
और वो प्लास्टिक की गेंद,
सब अच्छा सा लगता था, और अब भी अच्छा लगता हैं

2006 शायद यही वो पहला साल था, जब दिल्ली जैसे शहर में पता चलने लगा कि एक बिहारी होना लगता क्या हैं,
दोस्त मुझे मेरे नाम से कम और बिहारी बुलाने लगे,
समझ ही नहीं आता था, कि आख़िर ये बिहारी बोल के हस्ते क्यों है?
कुछ वक़्त बाद पता चल चुका था कि बड़े शहर में बिहारी एक पहचान नहीं यह तो एक गाली होती है यार,
जान कर दिल बोहत उदास हो गया था यार
ख़ैर कोई बात नहीं!

स्कूल बदला दोस्त बदले ,बड़े हुए तो और बाते पता चली,
चलो वो भी सुनता हूं!
यहां बिहारी की पहचान ज़्यादातर लोग कैसे करते है
चलो ये बताता हूं..
अगर तुम स्टाइलिश कपड़े नहीं पहनते तो तुम हो बिहारी
अगर तुम हॉलीवुड को पसंद नहीं करते तो तुम हो बिहारी
अगर कोई मज़दूर हैं तो वो तो शत प्रतिशत हैं ही बिहारी

जब किसी को पता चलता तो वो मुझसे कुछ इस तरह कहता...
तू बिहारी है? देख कर तो नहीं लगता...
एक बार ऐसे ही किसी दोस्त से एक रेप केस के बारे में डिस्कस कर रहा था..
जानते हो उसने कहा क्या?..
ये जितने बिहारी होते है ना ये काम उन्हीं के होते है, इस बार मेरा खून खौल गया था और उस पर मेरा हाथ उठ गया था।
भले ही उसने sorry बोला पर वो समझकर भी नासमझ ही रह गया था

क्या करू?..
लोग क्या सच में भूले हुए हैं क्या?
 कि..कभी भगवान् बुद्ध ने लिया था जन्म
उस भूमि का नाम बिहार हैं,
गंगा की धार का नाम बिहार हैं,

सम्राट अशोक का चिन्ह ,जो बढ़ाता देश का मान हैं,
वो चिन्ह था जहां बना,उस देश का नाम बिहार है,
जब दुनिया अज्ञानता के अन्धकार में थी
तब नालंदा के ही ज्ञान से तो रोशन हुआ पूरा भारत संसार हैं,
जहां गौतम को बुद्धा की उपाधि और महावीर को मिला अपना निर्वाण है ,
उसी राज्य का नाम तो आज बिहार हैं,

चन्द्रगुप्त जिसने भारत को अखंड था बनाया,
समुद्रगुप्त का शाशन काल भारत का स्वर्णकाल हैं कहलाया,
जिसने चन्द्रगुप्त को विक्रमादित्य बनाया
उस माटी का नाम बिहार है,
गुरु गोबिंद सिंह जैसे वीर जहां जन्मे
उन दसवें गुरु का जन्मस्थल बिहार हैं,

हाँ माना कि आज बिहार की स्तिथि अच्छी नहीं,
क्या करे सत्ता की बागडोर ही ऐसे हाथो में हैं।
पर क्या इसके जिम्मेदार  सच में सभी बिहारी है?
एजुकेशन के कई मज़ाक किस्से जिन्हें लाइव न्यूज टी.वी पर शौक से  दिखाया गया
क्यों आजतक वो तमाम बने आई. ए. एस और आई. पी.स बने सबसे ज़्यादा आबादी को जो बिहार से ही बने उन्हें क्यों नहीं गिनाया गया?
हाँ आपको घूूस देकर बनी topper रूबी याद हैं
पर जो बनी असली TOPPER उस कीर्ति की शक्ल भी याद हैं?

बस बुराईयां ही है हम में?
क्या कोई अच्छाई नहीं?
गर शक्ल अच्छी नहीं है तो इसलिए हर बुरी चीज की तुलना  क्या आप हमसे ही करेंगे?
और शक्ल अच्छी मिली तो सुशांत सिंह राजपूत जो खुद बिहार से है उन्हें ही क्या दिल में बिठाएंगे ?
कौन सा अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड है जिससे बिहार की प्रतिभा को नहीं नवाजा ?
पदमश्री, पद्मभूषण, भारत रत्न, दादा साहेब फाल्के सभी तो हैं कमाया
फ़िर भी आज तक बिहार से बाहर बिहार इज्जत क्यों नहीं है कमा पाया?????
आख़िर क्यों?
ख़ैर कोई बात नहीं!

कौन सा ऐसा क्षेत्र है? जहां बिहारी नहीं पहुंच पाया?
इतिहास के युद्ध में बिहार हैं
आज की फौज में बिहार है
गीत संगीत में पदमश्री कमाने वाली शारदा सिन्हा बिहार हैं
शहनाई का बादशाह बिस्मिल्ला खान बिहार ही तो हैं
भारत का प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, एक बिहारी तो था
कलम से क्रांति लाने वाला दिनकर भी बिहार था ,
और
आप तब भी कहते हैं कि बिहारी कुछ नहीं कर सकते
अरे आपको क्या पता ?
जब हर साल दरभंगा,गोपालगंज, सहरसा इतियादी जैसे क्षेत्र बाढ़ में डूब जाते है
और हर साल दोबारा खड़े हों जाते है
तो  इस बीच के अंतराल में उनके
उस जज़्बे, उस हौसले उस संघर्ष के बारे में
अरे आपको क्या पता?
ख़ैर कोई बात नहीं
आप तब भी नहीं समझेंगे।

अच्छा कभी किसी ने आपकी बोली या आपकी टूटी फूटी  अंग्रेजी का मज़ाक बनाया है?
जानते हो ना कैसा लगता हैं?
ठीक वैसा ही लगता है जब बिहार से आया कोई अपने को मैं नहीं हम कहता है, और  हम का मज़ाक बनने में कुछ क्षण लगता है।
अरे उसकी बोली का मज़ाक बना कर कितने देर के लिए हस लोगे?
कभी सोचा उसे कैसा लगा होगा? अपने आप को भीड़ में अकेला पाकर ..क्या इसमें उसी की गलती है?
अरे वो बिहारी अपने पहनावे से नहीं अपने दिल से हैं
वो बिहारी अपने पहनावे से नहीं अपने दिल से हैं ,
वो बिहारी इसलिए हैं क्योंकि उसके दिल में बिहार है,
हांँ मैं बिहारी हूँ, हांँ मेरे दिल में बिहार है
मैं बिहारी इसलिए हूंँ क्योंकि मेरा जन्म बिहार में हुआ है
इसलिए हांँ मैं बिहारी हूंँ , और मुझे इसके लिए गर्व हैं।
इन सबसे बड़ी बात भी हैं एक
कि मैं एक भारतीय हूंँ।

                         __✍️शुभम शाह

Tuesday, 15 May 2018

चलो इश्क़ आज तुझको बदनाम करते हैं





चल इश्क़ आज तुझको याद करते है,
सुन इश्क़...
इश्क़ कैसे करते चल आज तुझको ये बतलाते हैं,
चलो आज इश्क़ की बातें करते हैं,
चलो.. इश्क़ आज तुझको बदनाम करते हैं...

कहानी ये मेरी नहीं, कहानी ये हर मुकम्मल मोहब्बत की अधूरी दास्तां की हैं,
कहानी ये हर उस hopeless आशिक़ की बतलानी हैं,
कहानी ये उस आशावादी बंदे की भी हैं, जिसने इश्क़ में अब तक ना हार मानी हैं,
चलो आज उस आशिक़ की भी बात करते है..
चलो...इश्क़ आज तुझको थोड़ा सा बदनाम करते हैं।

जो लिया नाम उसका तो होगी यूहीं बदनाम वो
‌उस सोनी सी लड़की  को आज इन अल्फ़ाज़ो में कहीं गुमनाम करते हैं,
जिसे देख मैं बेकरार हुआ था, आज उन मदहोश आंँखो को फ़िर अपने नाम करते हैं,
चलो आज उस लड़की की भी बात करते हैं
चलो...इश्क़ आज तुझको फ़िर से याद करते हैं।

काटी किसी ने नस हैं, तो भेजे किसी ने ख़त हैं,
पिए किसी ने जाम हैं, तो कोई पी रहा मोहब्बत के, शर्बत हैं,
किसी के हाथो में उसका हाथ हैं,
तो किसी ज़ुबा पर बस उसकी सिर्फ आज बात हैं,
चलो आज उन्हीं बातों की बात करते हैं,
चलो...इश्क़ आज तुझको कुछ ज़्यादा ही बदनाम करते हैं।

मेरा मन हैं कि मैं तुझको एक ख़त लिखु,
उन सभी पुराने कारवां में जो तू हर रात रेडियो पर सुनती हैं,
और उन्हें सुन...
और उन्हें सुन बंद आंँखो से जो तुझे खयाल आते हैं उनमें सिर्फ़ मै दिखु,
चलो आज उन्हीं ख़यालो की बात करते हैं
चलो... इश्क़ आज तुझको बदनाम करते हैं..

                               __✍️शुभम शाह

Saturday, 12 May 2018

मांँ शुक्रिया!

मांँ



माँ,बा,मासा,अम्मा,मम्मी
या कह लो उर्दू में उसे अम्मी
कहने का बस लेहेज़ा बदलेगा,
दिल में बसे इस एक शब्द के लिए जज़बात नहीं,

जिसने मुझे इस जहां में है लाया,
आज उसके कुछ अक्स कलम से इस पन्ने पर उतारू
ना जाने ये खयाल आज कैसे हैं मन में आया,

सोचता हूंँ वो भी क्या मस्त लम्हा हुआ होगा
जब माँ की आंँखे नम हुई होगी,
शायद ये पहली और आखिरी मर्तबा हुआ होगा
जन्म देने के ठीक बाद मुझको रोता देख खुद दिल से खूब खुश हुई होगी,

सच ही तो कहते है सब,  की मांँ त्याग की मूरत होती है
अपने बच्चे के लिए खुद के लिए कभी बुने अरमान खोती है,
और फिर अपने बच्चो के सपनों में ही खुद के सपने वो संजोती है
उस नन्ही सी जान को कोई दिक्कत ना हो इसलिए बहुत बार
उसे सूखे पर सुला के बिना उफ्फ किए और खुद वो गीले पर सोती है,

जब जब बचपन में रात को नींद ना आए या लगता था भूतो डर
तब तब मांँ ने हैं मुझको सुलाया अपनी गोद में रख कर मेरा सर,
आज भी जब दुनिया की भागा दौड़ी में, ज़िन्दगी के वो तमाम तनाव जब बहुत ज़्यादा सताने लगती हैं,
तब भी तो उन सभी दुख दर्द को छू मंतर करने के लिए वो मांँ की गोद आज भी प्यारी लगती हैं,

और सच कहता हूंँ सुकून बड़ा मिलता हैं...

ये सब जानता हूंँ फिर भी ना जाने क्यों ये गलती मुझसे हो जाती हैं
गर कभी मांँ गलती से कोई गलती कर देती हैं ना जाने क्यूं ये मेरी भद्दी सी आवाज़ ऊंची हो जाती हैं,
तब ना जाने कुछ पलो के बाद कयू इस दिल को दुनिया की गई सबसे बड़ी गलती दिखने लगा जाती हैं
हा ये अलग बात है कि मुझे गलती का एहसास होने के बाद sorry  बोल देता हूंँ और मांँ मान भी जाती हैं,

लेकिन एक सवाल उठ जाता हैं उस वक़्त मेरे मन में
क्या जिस मां ने इतना कुछ मेरे लिए किया,
क्या मैने उसे कभी इस दी हुई ज़िन्दगी का, क्यों आज तक शुक्रिया अदा नहीं किया?

हा मानता हूं जब मेरा या मेरे भाई का मन  कोई नए किस्म का पकवान खाने का मन किया,
तब तब तूने Youtube से वीडीयो देख उसे सीख कुछ अपने अंदाज़ से हमारे लिए बनाया , और बकायदा उस मेहनत के लिए हमने Thank you भी कहा।
पर क्यों आज तक हमारे सारे ख्वाहिशों को पापा से छुपा कर पूरा करने पर क्यूं उस मांँ का हमने शुक्रिया अदा नहीं किया?

रोज़ शाम की वो पॉकेट मनी, रोज़ शाम के वो मौसमी का जूस,
कभी जो बनाई वो गर्मी में तूने कुल्फ़ि की कटोरी,
जब गर्मियों की छुट्टियों का काम ना हो पाता, तो कर उसे पूरा तू  तेरा मुझको कर देना खुश,
और जब नींद ना आती थी तो मांँ आज भी याद हैं तेरी वो सुनाई लोरी,

मांँ इन सबके लिए कैसे शुक्रिया तेरा अदा करू
सामझ नहीं ये मुझको आ रहा
शायद इसलिए आज तुझको इस पन्ने पर अपनी कलम
से उतारने की कोशिश में हूँ लग रहा..
यही हैं मेरी तरफ़ से मांँ तुझको  शुक्रिया...

पर खत्म नहीं ये हुई कविता

[आगे जो लिखने हूंँ जा रहा वो मेरे दोस्त आप सबके लिए है
गर मेरे दोस्त तुमसे तुम्हारी मांँ (या पापा भी) आज की दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलना चाहते है,

गर वो तुमसे आज कल के स्मार्ट फोंस तुमसे के बारे में तुमसे  सीखना चाहते हैं,
तो जरूर सिखाना..
क्यूंकी, मेरे दोस्तो याद रखना ये वही मांँ हैं जिसने तुम्हें चम्मच कैसे पकड़ते है ये था सिखाया और था ये बताया  कि कैसे जीनी हैं ज़िन्दगी,
तुम सिखा कर देखना... जब तुमसे वो काम सीख कर खुद वो करते है तब उनके चेहरे पर जो एक प्यारी सी मुस्कुराहट आयेगी ना,
उस पल बस तुम यहीं कहोगे दिल में की तुझसे बस और क्या चाहिए ज़िंदगी! ]

मैं जानता हूंँ और जानते तुम भी हो कि मांँ का तुम शुक्रिया तुम पूरी ज़िन्दगी भी बिता लोना तो भी अदा नहीं कर सकते ,
और ये कविता भी बस शुक्रिया अदा करने की बस एक कोशिश थी
सिर्फ़ एक नाकाम कोशिश..
                              __✍️शुभम शाह

Friday, 11 May 2018

कॉलेज का वो अपना सा ग्रुप



कॉलेज का वो पहला दिन
दिल में थी अजब सी धक धक
एक धक थी जो कहती ज़िन्दगी का नया अध्याय हुआ हैं शुरू,
एक धक थी जो कहती सम्भल के रहना बंधु पहले दिन ही हो ना जाए कोई स्यप्पा शुरू,

मेट्रो में बैठे इसी खयालात में ना जाने कब गोविंदपुरी स्टेशन से मैं आगे निकल गया,
उतारना था जहां वो स्टेेेशन था काफ़ी पीछे रह गया,

कॉलेज में पहुंचा तो समझ ना आए, कहा जाऊ किस्से  पुछू,
कुछ देर आगे चला तो एक आवाज़ सुनाई दी वो भी किसी से कह रहा कि कहा जाऊ किस्से पुछू,
नजाने क्यों मुझे ये सुनकर अच्छा लगा शायद इस अनजाने भीड़ में एक साथी था मिल गया,
जैसे तैसे क्लास पता करी और वहा जाके चुप चाप एक से ठीक पीछे दूसरी बेंच पर बैठ गया,

मेरी जैसी हालत लिए ठीक मेरे पीछे एक और लड़का बैठ गया,
और पल दो पल लगे नहीं कि वो भी मेरा दोस्त बन गया ,

कुछ दिनों में हुई प्रोफेसर्स से भी मुलाक़ात
जिन्होंने करवाई हमारी हिन्दी के गजब के ऐतिहासिक साहित्य  से मुलाक़ात,
जिसे देख के ना जाने क्यों दिमाग बोल रहा था प्यारे बंधु अब तो लगने वाली है एक दम अच्छे से तेरी वाट,

यूंही कहीं नज़र एक लड़की पर पड़ी
मैं उसके पीछे और वो मेरे आगे थी खड़ी,
जिसके बालों को देख कर मैं बोला
वाह! क्या लड़की है...

जब उसने खुद को पलटा
और तब मन मुझसे उलझा,
और मुंह से ना जाने क्यों ये निकला
अबे यार!  ये कैसी सी लड़की है..

ऐसा कई मर्तबा हुआ
हर बार पसंद किसी के बाल आते
हर बार फ़िर वो खुद पलट कर करती बाते,
मैं हर बार हस कर खुद से कहता कि ..
अबे यार! ये तो फ़िर वही लड़की है..

बहरहाल समय के साथ साथ बाते हुई
बातो की शुरुआत में ही हम दोनों को पता चला
डैट वी बोथ आर फ्रोम बिहार,
उस वक़्त लगा था कि ये लड़की खुद में ही पहेली है
पर आज खुश हूं कि वो मेरी सबसे अच्छी सहेली है।

सहेली के साथ मिली मुफ्त में एक और सहेली है
उसको बुलाते सब शीतल है और लगती वो मुझको भी ज़रा सी ठंडी है,
कॉलेज की क्लास ख़तम हुुई नहीं सभी कि
 घर चलो-  घर चलो बोलने वाली वो लगती एक अलार्म वाली गंटी है, 😒

जिस तरह से रोज़ सुबह पक्के समय पर उदय होता है वो आसमान वाला रवि,
ठीक उसी तरह का एक लड़का रोज़ लेट आता , कुकुर! बहुत बार तो आता ही नहीं
ना जाने फिर  भी क्यों उसका नाम था रवि?

लेट से आया याद ..दुनिया खूब कहती है कि लड़कियां खूब देरी करती है
जिस दिन बना हो प्लान सैर सपाटे का उस दिन तो और हद पार देरी करती है,
नाम ना लूंगा किसी का भी मैं
पर ऐसा ही कुछ हाल मेरे कुछ प्यारी सी सहेलियो का  था,
जिनके नाम का मतलब चुप्पी और बहुरंगी  सा था
जिनमे से एक न जाने देखते ही देखते कब दोस्त बनी,
और एक ने फ्रेशर पार्टी में से सीधा अपनी गैंग में एंट्री ले मचाँई सन सनी,

ऊपर जो दोस्त मेरी जैसी हालत लिए ठीक मेरे ही पीछे  बैठा था एक ब्रो
आज चार साल बाद भी मुझसे बोलता है इस क्वेशचन का आंसर क्या है? ..ब्रो ,
किसी लड़की के सामने वट बढ़े इसलिए नाम बताता है अपना स्काई
अपने फ़ोन में तो आज भी नाम उसका हैं गंगू , कुछ भी करले ये नाम न बदलेगा भाई,


पर मंज़र वो भी सुहाना था जब साथ हुआ करते हम सारे थे ,
वो गर्म चाय के प्याले और  चुरा के खाए कुछ निवाले भी तो लगते बड़े प्यारे थे,
खुशी के मौके पर था डोमिनोज़ का वो अड्डा हमारा,
और घूमने को था पूरा दिल्ली हमारा,

पाजी के वो राजमा चावल और मोमोज़ वाले के मोमोज़ से था दिल को बड़ा लगाव,
ठंडी सी दोस्त के लिए स्पायसी कम ग्रेवी ज़्यादा वाली चिल्ली पोटेटो का भी तो कम न होता था भाव,

देखे जाते हुए कॉलेज और भी कुछ स्टाइलिश बस्ते,
तो याद कर के कल को दिल ही दिल में हम भी हसते,
ये दुनिया कमिनी सपने अपने सस्ते,
याद कर ये हम खुद से खुुद को कहते,

यार!  वो कॉलेज के दिन भी क्या मस्त थे।

                                         __✍️शुभम शाह














Wednesday, 9 May 2018

मुखौटा

मुखौटा!


बचपन में जब कभी भी मेले में घूमने जाते तो मैं मुखौटा ज़रूर था खरीदता कभी हनुमान का, तो कभी शेरा का, पर बड़े होने के साथ साथ पता चलता रहा कि इंसान को मुखौटे खरीदने की जरूरत ही नहीं... क्यों की वो हर सुबह घर से निकलते वक़्त एक मुखौटा पहन कर ही निकलता हैं।

कभी खुश मिजाज़ का, कभी सड़ियाल अंदाज़ का,
कभी एक दोस्त में छिपे दुश्मन का, तो कभी दुश्मन में छिपे दोस्त का,
कहीं झूठ का, तो कहीं प्रेम का,
कहीं सच का, तो कहीं फरेब का।

साथ हम हैं सभी के ,पर कौन हमारा हैं ये तो चलेगा बुरे वक़्त पर ही पता,
ये ना समझना कि सुना रहा हूं सिर्फ दुनिया की व्यथा हो सकता है हमने भी पहना हो वहीं मुखौटा...
क्या पता?

दोस्त हैं तो दोस्त बन , दोस्त होने का दिखावा मत कर
प्यार हैं तो प्यार बन , प्यार जैसा कोई छलावा मत कर
नफ़रत हैं गर मुझसे तो नफरत कर, पर अपनेपन का चोगा पहन यू हवाला मत कर।

गर मिले वक़्त तो गौर करना ज़रूर, जो तू था अपने अल्लहड़ बचपन में.. क्या तू अभी भी वही रहा हैं?
गर मिले वक़्त तो सवाल करना अपने ही आइने में खड़े उस अपने आप से...क्या जैसा तेरा अंतर्मन था सालो पहले क्या वो मन अब भी वैसा ही साफ पड़ा हैं?

क्या हुई ऐसी मजबूरी? क्यों अपनाया ये मुखौटा इसका कारण तो तुम्हें ही हैं पता...
मैं लगाऊंगा सिर्फ अंदाज़ा ,कारण सामने निकाल कर आ जाए क्या पता??

घर वाले परवांगी नहीं देंगे प्यार की, तो पहन लिया पत्थर दिल का मुखौटा
बुरे इरादे किसी को दिख ना जाए, तो पहन लिया अपनेपन का मुखौटा
किसी से मतलब निकालना हो, तो पहन लिया प्यार का मुखौटा,
किसी को दिल में छुपा गम ना दिख जाए, तो पहन लिया खुश दिल का मुखौटा।

कुछ तो सोचो उस मुखौटे के पीछे छिपे खुद के बारे में एक वो ही तो हैं जो कामगार हैं तुझको तुझसे रू ब रू कराने में,
कभी घर में आइने के पास बैठकर सोचो तो उस मुखौटे को उतारने के बारे में।
क्या तुम्हें खुशी नहीं होगी खुद को खुद से मिलने में? खुद को दुनिया से मिलाने में? खुद को अपने प्यार से मिलाने में?

बहुत ही कम लोग बचे हैं जो इस मुखौटे को पहनना पसंद करते ही नहीं ,
बहुत ही कम लोग बचे हैं जिन्हें नहीं पता कि ये मुखौटा  हैं क्या? जानते ही नहीं।
इसी बात का बस गम है.... कि बहुत कम लोग ही बचे हैं ☺️
                                       
                                                          _✍️शुभम शाह

Sunday, 6 May 2018

मेरा कुछ सामान ज़िन्दगी तुम्हारे पास पड़ा है।

मेरा कुछ सामान ज़िन्दगी तुम्हारे पास पड़ा है
वो बचपन की मीठे  दिन जहां मैं खुश रहा करता था,
ना नौकरी की चिंता ना कोई सर पर प्रेशर बस वो स्कूल का बस्ता ही प्यारा लगता था,

नब्बे के दशक में जिया हूं मैं जब हम क्रिकेट के शतक से दूर और सन् २०००  शतक के बहुत करीब हुआ करता था,
जहां संडे के दिन अब संडे जैसे लगते ही नहीं वहीं संडे को खास संडे बनाने  लिए हमारा प्यारा शक्तिमान आया करता था,

टेलीफोन! याद है मुझे आज भी जब गांव से कोई फोन  हमारे लिए आता था तो घंटी हमारे घर नहीं पड़ोसी के घर की बजती थीं ,😂😂😂

वो ठंडे रसना की चुस्कियां कुछ ,जिसे पीकर हो जाती थी हमारी जीभ सतरंगी सी,
जब बड़े होकर बनना था स्पेस हीरो ताकि कारनामे कर सके लाईक ए कैप्टन व्योम सा कुछ, ऐसी ही तो ज़िन्दगी थी हमारी कुछ अतरंगी सी,

स्कूल के बस्ते में छुपी थी खुशियां सारी

याद आते है आज भी वो दिन जब नए क्लास में जाने से पहले कॉपियां पर चढ़ाते थे वो भुरा सा कवर ,
और चिपकाते थे उसपर एक सुंदर सा नाम लिखने वाला स्टीकर,
होमवर्क करने पर आती थी याद नानी सबको,
और होमवर्क कॉपी को चैक करवाते समय सबसे उपर रखने में डर भी लगता है था सबको,

क्या याद है आपको जब हम प्रिंसेस के लिए सुपर मारियो बन ड्रैगन से भी लड़ जाते थे,
पर अगर बेसन का लड्डू ना मिले तो मुंह फूला कर बैठ जाते थे,
ज़माना आज भी वही अच्छा लगता है जहां अच्छी खबरें व्हाट्सएप पर नहीं साइकिल पर सवार पोस्ट मैन अंकल लाते थे,

टीवी भी तो खूब मज़े दिलाता था,भले ही देखने के लिए डी डी नेशनल और डी डी मेट्रो थे,
 पर उसी में हम अपनी दुनिया ढूंढ़ लिया करते थे,
और उसी में खूब मज़ा आता था,

कहानियां जो हमे सीख देती थी वो नैतिक शिक्षा की किताब नहीं ,
बल्कि टीवी पर आने वाला मालगुडी डेज़ और टिंबा रूचा की कहानियां दिया करते थे,

याद हैं वो त्योहारों के दिन
जब होली के पकवान को बनते देखना भी अच्छा लगता था,
और वो ईद की छुट्टी भी अच्छी लगती थी,
दीवाली पर बिजली बम फोड़ना भी अच्छा लगता था,
और क्रिसमस की वो पेस्ट्री भी अच्छी लगती थी,

ए ज़िन्दगी मेरा यही सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मुझको मेरी यही यादें वहीं दिन वहीं मस्तिया वहीं दोस्त वहीं बेफ़िक्री वहीं मौजे वापस लौटा दो,
मेरा कुछ सामान ज़िन्दगी तुम्हारे पास पड़ा है।

                                                __✍️शुभम शाह